संबंधों की
अनपायनी
शिला को तुमने
रेत के घरौंदे-सा
ढहा दिया--और
मेरे भीतर मौल गईं
तमाम लाल-हरी चूड़ियाँ!
शगुनों की देहरी पर
पाँव रखने से पहले ही
तुम्हारे हाथों
हुए इस अपशगुन को
अपने विश्वास का
उपहार मानूँ या नियति?
संबंधों की
अनपायनी
शिला को तुमने
रेत के घरौंदे-सा
ढहा दिया--और
मेरे भीतर मौल गईं
तमाम लाल-हरी चूड़ियाँ!
शगुनों की देहरी पर
पाँव रखने से पहले ही
तुम्हारे हाथों
हुए इस अपशगुन को
अपने विश्वास का
उपहार मानूँ या नियति?