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अफ़ीम की एक ख़ुराक / निज़ार क़ब्बानी / विनोद दास

लफ़्ज़ ऐसी उछलती गेंद है
हुक़्न्मरान जिसे अपनी बालकनी से फेंकते हैं
जनता उस गेंद के पीछे-पीछे भागती है
उनकी जीभें भूखे कुत्तों की तरह बाहर लटकी रहती हैं

अरब की दुनिया में लफ्ज़
एक ऐसा चमकीला कठपुतला है
जो सात ज़बानें<ref>क़ुरान पढ़ने के सात तरीके</ref> बोलता है
और एक सुर्ख़ टोपी पहनता है
वह जन्नत और भड़कीले कंगन बेचता है
फैली आँखों वाले बच्चों को बेचता है
सफ़ेद खरगोशों और फ़ाख़्ताओं को बेचता है

लफ़्ज़ ज़्यादा काम करनेवाली रण्डी की तरह है
लेखक उसके साथ सोता है
अख़बारनवीस उसके साथ सोता है
मस्जिद का इमाम उसके साथ सोता है

सातवीं सदी से
लफ़्ज़
अफ़ीम की एक ख़ुराक है
हुक़्मरान अपनी तक़रीरों से जनता को शान्त करते हैं
लफ़्ज़ हमारे मुल्क़ में एक ऐसी औरत है
जो मर्दों की कामना करती है
जबसे वह पवित्र किताब बन गई है क़ानून

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास

शब्दार्थ
<references/>