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अबके / भवानीप्रसाद मिश्र

मुझे पंछी बनाना अबके

या मछली

या कली


और बनाना ही हो आदमी

तो किसी ऐसे ग्रह पर

जहां यहां से बेहतर आदमी हो


कमी और चाहे जिस तरह की हो

पारस्परिकता की न हो !