बातों का खो गया सारा अर्थ
शेष रह गई मात्र उसकी आवाज़
आज का दिन नाव-सा चला गया
न कोई मांझी, न कोई पाल
शब्दों के केंचुल ने ढक दिया मेरा प्रश्न,
और तुम्हारा उत्तर-
तुम्हारे ही साथ सीढ़ियों से उतर गया;
कविता में कौन पकड़ पाया सत्य,
कवि स्वयं अपनी व्याख्या
तुम कुछ भी कर लो मगर
किसी का हृदय कभी नहीं छीना जा सकता,
जीवन का युद्ध रहा सदा दुखान्त
इसमें कभी कोई नहीं जीता,
न युद्ध न प्रेम
किसी का कोई अर्थ कहीं नहीं होता...
मेरा न कोई वर्तमान, नकोई भविष्य
फिर भी जरूरी है स्वप्नों का गीत
मत छीनों मुझसे
मेरा कलपता अतीत
बातों की फुलझड़ियों से जला लें साँझ,
द्वार पर भीड़ जुड़ी
मैं ठहरा जाने वाला अतिथि,
मैं रहा एक ऎसा अभिनेता
जिसे रंगमंच से निकलना नहीं आता,
निकल भी जाता तो बोलता क्या-
नाटककार ने कहीं नहीं लिखा...