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अमरता / रामदरश मिश्र

वे अमर तो हो गये
लेकिन उनकी अमरता का स्वाद तो
और लोग ले रहे हैं
वे कहाँ हैं, किस रूप में हैं, हैं भी कि नहीं
कौन जानता है
इस अमरता के लिए
उन्होंने जीवन में क्या-क्या नहीं सहा
निरंतर अभाव में सने रहे
उन पर संकटों और विरोधों के बाण तने रहे
बीबी-बच्चों की सूनी आँखें
सदा निहारती रहीं उनकी खाली फटी जेब
उनकी रचनाओं में दुनिया का दर्द जागता रहा
अपना दर्द सोता रहा
घर का चूल्हा कभी हँसता, कभी रोता रहा

वे अभाव में उपजे
अभाव में पले
और अभाव में चले गये
अपने पीछे जयजयकार छोड़कर।
-15.8.2014