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अमरूद / पवन करण

गड़ाकर रखी गईं हम पर आँखें
मगर पेड़ों पर जब हम बढ़े
तोतों ने आकर कुतर ही लिया हमें
बिठाकर रखे गए हम पर पहरे

मगर पेड़ों पर जब हम पके
बच्चों ने ढेले मारकर लूट ही लिया हमें
लाख तलाशा गया हमें इधर-उधर
मगर बाग़ों से जब हम चले
मज़दूरों ने आख़िर छुपा ही लिया हमें

इस तरह जिन दाँतों तक
सबसे पहले पहुँचना चाहते थे पहुँचे हम