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अयोध्या-3 / सुशीला पुरी

गूंगी अयोध्या
टूटते हैं मंदिर यहाँ
टूटती हैं मस्जिद यहाँ
टूट कर बिखर जाते हैं
अजान के स्वर
चूर-चूर हो जाती है
घंटियों की स्वरलहरियाँ
 
कोई नहीं बचाता यहाँ
सरगमों के स्वर
कोई नहीं पोछता
सरयू के आँसू
उसके लहरों की उदास कम्पन

अक्सर भटकती है सरयू
खोजते हुए
सीता की कल-कल हँसी ।