कितनी धुनें मैं ने सुनी हैं
कितने बजैयों से
और गीत मैं ने सुने हैं
कितने गवैयों से
जिन से कुंजबेलों की पत्तियाँ कँपने लगीं,
या कि बन-झरने की लहरें ठिठक गयीं?
यही एक तान कभी नहीं सुनी
ऐसा गान कभी
सुनने में नहीं आया-
ऐसा तुम ने क्या गाया
कवि, यह गीत पहले क्यों नहीं सुनाया
जिस से कि मेरी आँखें झँपने लगीं,
मेरी क्वारी जाँघें फड़क गयीं?
अक्टूबर, 1969
ई.पू. सातवीं शती के खित्तारा-वादक महाकवि आरियोन के वादन से पशु-पक्षी, जल-जन्तु तक मुग्ध हो जाते थे।