अरी धरा! तेरा श्रृंगार
अनुपम, मनोरम, सौंदर्य भरा
कानन वृक्ष-लता-वनस्पतियों वाली
वसुधा हरित आभा लिए भायी
नव कोपल, मंजर, पराग, पिक
रम्यक चितवन मनोहर संगीत
बहुरंग कुसुमपुंज मकरंद तेरे यौवन
परिमल मधुर उच्छवास भरे तन
वसंत फागुन हेमंत बयार में झूमे
रहती वसुधा तू मादक मौले-मौले
अरुण किरणों से नहा प्रभात में
रवि देता ऊष्मा-प्रकाश धरा में
चाँद- तारे दीप सामान नभ सारे
झिलमिल-झिलमिल तुझे संवारे
हिमाच्छादित रजत शैल-शिखर
मनोहर आभा बिखेरे तुहिन कण
अरी धरा! तेरा श्रृंगार
अनुपम, मनोरम, सौंदर्य भरा।