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अवाई / लीलाधर मंडलोई

उसकी अवाई* मंगल ध्‍वनि है उसके उस दिन की
आते ही उसके भूल जाएगी सब
बच्‍चों की चिल्‍लपों, दिन भर की खटन और दुनिया के व्‍यंग्‍य-बाण

वसंत-सी हुमकती कुहकेगी रातरानी-सी
दिनभर की गहरी नीली उदास चुप्‍पी के बाद
भूलकर समूचा दिन अब बोलेगी पहली बार
उसका बोलना संतूर है शिवकुमार का

इतने ढेरम-ढेर दुखों के बाद कैसा मीठा बोलती है वह.



  • - आगमन