क्या ! भूल रही है कोयल कूकना भी
पखेरू मन मार कर उड़ रहे आकाश
तितलियों की लुप्त हो रही चंचलता
और भौरों का फूलों से हो चुका मोहभंग
क्या ! नदियों का समुद्र से मिलने की घट रही चाह
बीच राह में ही कर रहीं प्राणत्याग
क्या ! हँसी का सम्बन्ध हृदय से हट कर
जुड़ गया दिमाग से
क्या ! उल्टा-पुल्टा हो गया दुनिया का गणित
इन तमाम बातों में सिर खपाता कवि
हो रहा था, दिनोंदिन अकेला और बूढ़ा, असमय।