असम्भव
लगता
कह पाना
यूँ मानो
अपने आपको
दोहराता हुआ
देह से भिन्न
कोई आस्वादन,
सत्य के
अनुकरण में
क्या इतना कुछ
काफी नहीं,
या फिर
इसका उल्टा
साल दर साल
किसी का
अनुयायी
बने रहना
शायद
असम्भव ही।
असम्भव
लगता
कह पाना
यूँ मानो
अपने आपको
दोहराता हुआ
देह से भिन्न
कोई आस्वादन,
सत्य के
अनुकरण में
क्या इतना कुछ
काफी नहीं,
या फिर
इसका उल्टा
साल दर साल
किसी का
अनुयायी
बने रहना
शायद
असम्भव ही।