Last modified on 4 जुलाई 2017, at 10:24

असामान्यता / रंजना जायसवाल

धूल-धूसरित पेड़ों को देखकर
जी चाहता है
धो दूँ उनकी एक-एक पत्ती
झाड़-झंखाड़ जैसे बालों वाली
मैली-कुचैली बच्चियों को देखकर
जी चाहता है
रगड़-रगड़कर नहलाऊँ
सँवार दूँ उनके रूखे केश
मित्रों से बतियाते
जी चाहता है
अदृश्य चुंबक से खींच लूँ
उनका काइयांपन
रंगी-पुती, अधनंगी स्त्रियॉं को देखकर
जी चाहता है
तोड़ दूँ उनका भरम
मेरे मित्र कहते हैं
मैं असामान्य हो रही हूँ