असीम अनन्त, व्योम, यही तो मेरी छत है!
समाहित तत्त्व सारे, निर्गुण का स्थायी आवास
हरी भरी धरती, विस्तरित, चतुर्दिक-
यही तो है बिछौना, जो देता मुझे विश्राम!
हर दिशा मेरा आवरण, पवन आभूषण-
हर घर मेरा जहाँ, पथ मुड़ जाता स्वतः मेरा,
पथिक हूँ, हर डग की पदचाप-
विकल मेरा हर श्वास, तुमसे, आश्रय माँगता!