आसमान जब मुझे अपनी बाँहों में लेता है
और ज़मीन अपनी पनाहों में लेती है
मैं उन दोनों के मिलन की कहानी
लिख जाती हूँ, श्वास से क्षितिज बन जाती हूँ ।
दिशाएँ जब भी मुझे सुनती हैं
हवाएँ जब भी मुझे छूती हैं
मैं ध्वनि बन फैल जाती हूँ
और छुअन से अहसास हो जाती हूँ ।
किसी शंख की आवाज़ जब मुझे लुभाती है
किसी माँ की लोरी जब मुझे सुलाती है
मैं दर्द से दुआ हो जाती हूँ
आँसुओं से ओस बन जाती हूँ ।
अनहद नाद जब भी बज उठता है
और अंतर्मन प्रफुल्लित होता है
मैं सीमित हो असीमित में विलीन होकर
आकार से निराकार हो जाती हूँ ।
उस अलौकिक क्षण में मैं स्वयं को उसी का अंश मानती हूँ
उस अद्वितीय पल में मैं उसी का रूप पाती हूँ ।