अहसास को जब फ़िक्र का दम मिलता है
तख़लीक़ का तब जा के कँवल खिलता है
विजदां भी है इक उंसुरे-मलज़ूमे-सुख़न
विजदां ही से पैराहने-फ़न सिलता है।
अहसास को जब फ़िक्र का दम मिलता है
तख़लीक़ का तब जा के कँवल खिलता है
विजदां भी है इक उंसुरे-मलज़ूमे-सुख़न
विजदां ही से पैराहने-फ़न सिलता है।