कितनी बार सोचा
कोई बात ना करूँ
तुम जैसे निष्ठुर से कभी
पर..
जैसे सूरज
नर्म किरणों की दस्तक से
जगाता है उषा को
और भर देता है
जीवन में प्राण...
जैसे हवा हौले से
कह जाती है
पेड़ों के
कानों में कुछ
अल्हड सी बातें..
जैसे फूल
भर देते हैं
तितलियों की साँसों में
अपनी खुशबू ..
जैसे बादल बरस कर
कर देते हैं
धरती को तृप्त..
लहरें उछल कर जैसे
जा मिलती हैं
सागर से गले...
जैसे बतियाता है चाँद
रात में.. गुपचुप ..
चाँदनी से यूँ
जैसे चलती है परछाई
अंत तक
साथ साथ जिस्म के..
उसी तरह
समाहित हैं
तुममे मैं और मुझमे तुम
फिर तुम ही बताओ
खुद से बात करना...
कोई ..
छोड़ता है कभी....!!