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आखर / राम सेंगर

कविता में — हम में
या हम में — कविता में
कुछ भेद नहीं है ।

गति-अनगति अपनी या ऊकी ।
रार नहीं सास औ' बहू की ।
सम्वेदन और वाग्धारा की फिरकी ले
अनुभव का रँगिल विस्तार लिए निकले है
इकले हैं
इसका कुछ खेद नहीं है ।

अतिरेकों से मिली तितिक्षा ।
जीने की एक नई शिक्षा ।
आग-मोम की हार्दिकता के इन पन्नों पर
खीझ और तड़प के उजास भरा हर आखर

आखर है
गीता या वेद नहीं है ।

कविता में — हम में
या हम में — कविता में
कुछ भेद नहीं है ।