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आखिरी सलाम आखिरी कविता / दोपदी सिंघार / अम्बर रंजना पाण्डेय

कोई कविता आखिरी नहीं होती दोस्तों
 जब तक पुकारते रहोगे तुम अपने प्रेमियों को
 बची रहेगी मेरी कविता
 तुम्हारे गले में नसों में

जब तुम्हें मिलेगी खबर कि तुम माँ बनने वाली हो
 समझना दोपदी की कविता जिंदा हो गई
 कोई सलाम आखिरी नहीं होता
 बादल बनके आ जाऊँगी किसी रोज
 गेहूँ की बाली में दाना बनके आऊँगी

लाश दिखे कभी कोई जवान
 तो समझ लेना दोपदी जा रही है
 मगर दुखी मत होना गुस्सा होना

कभी कोई खड़ा हो जाए अन्याय के खिलाफ
 तो आँख की लाली परखना
 दोपदी की कविता बहुत दूर नहीं जा पाएगी
 रहेगी हमेशा तुम्हारे पास

और मरना मत, और डरना मत
 परेम करना जैसा मैंने किया
 कि दे दी अपनी जान

सुना है दोपदी के नाम का वारंट निकला है
 सुना है दोपदी को
 १५ अगस्त पर आजादी दे दी जाएगी ।