आखिर क्यों चाहिए
तुम्हें बस उतना ही आकाश
जितना है उसकी बाहों का घेरा है ….
जितने हैं उसके पैर ….
जितनी है उसकी जमीन …
जितनी है उसकी चादर …
क्यों … ?
आखिर क्यों … ?
तुम्हारे पास भी पंख हैं
फिर हौसला क्यों नहीं … ?
आखिर क्यों चाहिए
तुम्हें बस उतना ही आकाश
जितना है उसकी बाहों का घेरा है ….
जितने हैं उसके पैर ….
जितनी है उसकी जमीन …
जितनी है उसकी चादर …
क्यों … ?
आखिर क्यों … ?
तुम्हारे पास भी पंख हैं
फिर हौसला क्यों नहीं … ?