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आग्रह / संजय शाण्डिल्य

अब मान जाओ
इतना गुस्सा
इतनी उदासी
अब ख़त्म करो
आओ, हम फिर बैठें
और बतियाएँ

ऐसा क्यों नहीं हो सकता
कि एक प्रयास फिर से करें

इस अन्तिम प्रयास में
हम ज़रूर सफल होंगे
और यक़ीन करो
हर बार अन्तिम ही प्रयास में
मैं सफल हुआ हूँ

तो आओ,
इस अन्तिम के लिए
फिर से शुरुआत करें
और यह वादा है तुमसे
कि यदि हम असफल रहे

तो मुक्त हो जाएँगे एक दूसरे से
मेरी डाल से
तुम उड़ जाना सदा के लिए अनन्त में
मैं ख़ुद ही सूखकर ठूँठ हो जाऊँगा

वैसे,
मैं यह भी जानता हूँ, प्रिय !
न तुम उड़नेवाली हो कहीं
न मैं सूखनेवाला हूँ कभी ...