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आग / विश्वनाथप्रसाद तिवारी

कहीं बाहर नहीं होती वह
हर चीज़ में होती है आग

आत्मा की तरह अदृश्य और जाग्रत
बिरही की तरह बेचैन और आतुर

किसी भी चीज़ को उठा लो कहीं से
ले जाओ उसे आग के पास
स्पर्श होते ही
वह बन जाएगी आग।