नए कदलीपत्र पर नख से
लिख दिया मैंने तुम्हारा नाम
और कितना हो गया जीवन
भागवत के पृष्ठ-सा अभिराम !
आज दिनभर मैं रहा अठखेलियाँ करता
धूप-बादल से, नदी तट पर
आज पहली बार मुझको लगे फीके
इन्द्रधनुषी तितलियों के पर ।
कर लिया मैंने पुलक कर स्मरण तुमको
पाप है या पुण्य, जाने राम।
आज पहली बार खुलकर मिले मुझसे
शंख, सीपी और सरसों फूल
जोर से मैंने पुकारा फिर तुम्हीं को
माफ करना, हो गई फिर भूल ।
आज बारम्बार तुममें जिया मैंने
सुबह काशी की, अवध की शाम ।