आज तो चली अजब हवा
दब गया दमन का दबदबा,
भय विहीन,
है ज़मीन !
मात चाँद की अरे कला ;
शक्ति गीत गा रहा गला,
हर मलीन
है नवीन !
रूप है समाज का अजब,
हर मनुष्य है स्वतंत्रा अब,
ना अधीन
है न दीन !
आज तो चली अजब हवा
दब गया दमन का दबदबा,
भय विहीन,
है ज़मीन !
मात चाँद की अरे कला ;
शक्ति गीत गा रहा गला,
हर मलीन
है नवीन !
रूप है समाज का अजब,
हर मनुष्य है स्वतंत्रा अब,
ना अधीन
है न दीन !