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आत्मकथा / मनोज कुमार झा

यह जो डायरी जिसकी पीठ पर आँखें हैं घूमती
मुझे इसका चेहरा मुकद्दर
कई कविताएँ अधूरी या शायद सारी
कई तो मात्र अक्षर फूटी हूई
इसी में कर्ज़ की लिखा-पढ़ी काट-कूट
हाँ इसी में,
मैं क्या कहाँ से सुना रहा
मुझे कुछ पता नहीं, मुझे कुछ नहीं...