आत्मन् खाता था और रो पड़ता था
वस्तुतः वह ख़ुद, ख़ुद से खाया जाता था
वह हैरत से ख़ुद को खाया जाता देखता था
उसकी आँख फटी रह जाती थी
कि वह रोज़-रोज़ थोड़ा कम होता जाता था !
उसको एक उपाय सूझता था
वह रो-रोकर आँसुओं से
ख़ुद को थोड़ा अधिक कर लेना चाहता था
पर रोते-रोते एक दिन
वह नहीं की गुफ़ा में चला गया !