मेरे भीतर
छूट गया है
तुम्हारी आँखों का लिखा
चाहतों का पत्र
फड़फड़ाता बेचैन
तुम्हारी आँखों की तरह।
तुम्हारी पलकों की बरौनियाँ
मुझमें लिखती हैं
स्मृतियों के गहरे सुख
अन 'जी' आकांक्षाओं की प्यास।
मेरे भीतर
शेष है
तुम्हारे प्रणयालिंगन की
स्मरणीय छुअन
उस परिधि के भीतर
समाकर
घुल जाती हूँ स्नेह में
और बन जाती हूँ नेह-सरिता।
तुम्हारी परछाईं में
मिल जाती है मेरी परछाईं
एकालोप।