Last modified on 13 मई 2018, at 23:38

आदमी क्यों आज / नईम

आदमी क्यों आज ये गूंगे हुए, बहरे हुए,
मुसाफिर पाथेय बाँधे द्वार पर ठहरे हुए!

पुन्यभागा नदी के जल थमे, नीले पड़ गए,
रात के अनुमान अंधे, भय भरे भुतहे कुएँ।

अनमनी मैना रखे है चोंच सूखी डाल पर,
पैरवी अब कौन करता, पींजरे में हैं सुए।

रोटियों की मांग पर क्यों दागते हो गोलियाँ,
भर सकेंगे क्या कभी ये घाव जो गहरे हुए।

यातनाओं के शिविर में आस्थाएँ कै़द हैं-
धुर कँटीली थूहरों के चौतरफ पहरे हुए।

है न पानीदार कोई, पेट पीठों से लगे,
हो गई पहचान मुश्किल, एक-से चेहरे हुए।

छातियाँ छलनी हुईं तो क्रास पर ईसा चढ़े-
युद्धपोतों पर हमारे शांतिध्वज फहरे हुए!