Last modified on 12 अप्रैल 2018, at 16:40

आधार / रामेश्वरलाल खंडेलवाल 'तरुण'

टूटी वीणा-कर अतीत का ध्यान, भावमय हो जाती है!
भूत-भविष्यत् भूल, भ्रमरमाला मधु-रस में खो जाती है!
स्वाति-बूँद की आशा में जीता भविष्य का पथिक पपीहा,
उसका क्या आधार-न जिसका भूत, भावी-वर्तमान है?

जो विरही हो, वह गा लेगा बैठ चाँदनी में स्वर गीले,
कवि हो तो अर्पित कर देगा प्रिय को अपने गीत सुरीले!
सुख पायेगा आँक, तूलिका से प्राणों की व्यथा चितेरा,
उसका क्या आधार-न जिसके पास चित्र, स्वर शब्द, गान है?

जो श्रद्वामय-वह तो विश्वासों की भू पर चरण धरेगा,
हुआ काल्पनिक-पाँख खोल कल्पना-गगन में ही उड़ लेगा!
आत्म-समर्पण करने वाला-बह लेगा भावना-लहर में,
उसका क्या आधार-न जिसके पास भूमि, जल, आसमान है?