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आधुनिक परिवार / शम्भुनाथ मिश्र

परिवारक माने बस पत्नी, शेष निखत्तर गेल
आबि गेल पूरा कलियुग बस सोची अपनहि लेल

वसुधे छली कुटुम्ब, आब से भेल पुरनका बात
पहिने बेटा-बेटी पत्नी बाँकी छल सब कात
परिवारक सीमासँ बेटो-बेटी बाहर भेल।

जीवनकेर परिभाषा बदलल, बदलल सकल समाज
भोगवाद सागरमे पूरा डूबल जाय जहाज
वर्तमान जीबाक दौड़मे अछि भविष्य बुड़ि गेल।

सबटा हुकुम चलय पत्नीकेर आर कथूक न ध्यान
फूटल कौड़ी देब न जानथि तकर पूर्ण छनि ज्ञान
परिवारक छल पैघ पताका सब गुड़ गोबर भेल।

पत्नीकेँ अन्हरोखे तुकपर उठिते चाही चाह
जेना रहथि सरकारी हाकिम सब क्यौ रहय तबाह
माथक टेन्सन भोरेसँ छनि चाही मालिस तेल।

पहिलुक बनल सकल परिभाषा सबटा थिक पाखण्ड
पति पत्नीकेँ संगहि भोजन सै टा भेल निखण्ड
कर्मयोगपर भोगक पलड़ा भरी अछि पड़ि गेल।