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आपैरी अपणास / मोहम्मद सद्दीक

लाखां बरसां रै
लाम्बै समय री
लाम्बी तांत पर पिनीज‘र
समै रै जूनै नुंवैं चरखै कतीज‘र
कूकड़ी अटेरणै चढ़ी
अर डोरो बणी।
स्याणा। सुआंखा।
कूकड़ियां नै सुळझाणरी चेष्टा में
उळझाता चल्या गया।
कूकड़िया, इस्या उळझ्या कै
सिरो छूटग्यो
खीचड़ी इसी पकी के
गिठला-पड़ग्या
इकाई रो सिरो छूटग्यो
सिरे स्यूं सिरो रूंस ग्यो
आज ठौड़ ठौड़ सिर उठायोड़ा
सिराही सिरा है
आं अरबां सिरां पर
आपैरी अपणास बिसरीज गी
समै रा गोट
भीड़ कै ज्यूं आडो आवै
बींरै लारै ल्हुकीजतो इतिहास
पण-इतिहास रो थ्यावस
भूगोल री सींवां तोड़
आगै आणी चावै
बीं नै कुण रोकै।
आव-आव-म्हारै कानी आव
आपां गळै गळै बांखड़ी घाल‘र
एकाकार हो जावां
भांत-दुभांत। जात-पांत
पंथ-कुपथ रो भेद बिसार‘र
मिनख रो मान बढ़ावां।
हां। हां। थे म्हारा हो
मैं थारो हूं
जाण पिछाण घणी जूनी घणी पुराणी
वो देख बो पैलड़ो मिनख
लाखां बरसां सूं
सूरज रै साथै ऊगतो आंथतो
जीवन री घूमती चरखी पर
मूंजै ज्यूं लपटीजतो ओहो मिनख
थांरै/म्हारै/कीं लागतो होवैला
इणरो रगत आज ताईं
आपणी नाड़यां में रमतो फिरै
घिरणा अर भय रा भतूळिया
चक्कर इस्यो चलायो कै
थे म्हांस्यूं म्हे थास्यूं
अळगा अळगा दीसां
बा, पैलड़ी जोड़ी
बै, लोग लुगाई
समै री चाकी में दळीजता पिसीजता
लूंठै हाथां चूरमै ज्यूं चुरीजता
जलमता, मरता
पीढ़ी आगली पीढ़ी ऊं
जुड़तां आज
म्है थै थै म्है हो होग्या।
तीन अरब साठ किरोड़
सत्तर लाख चौरासी हजार
च्यार सौ बीस री लाम्बी कतार
अर इण कतार रै परलै पार
सिरे पर ऊभा लोग दीसै कोनी
घणै घणै बरसां स्यूं
बरसती जमती धूळ
धूळरी जमती पड़तां में
दबीजतो आपै रो अपणास
धुंधळातो जावै।
आव सिरै रै ईं किनारे स्यूं
सिरै रै बीं किनारै ताईं चालां
बोलां बतळावां
मन माथो काम में ल्यावां
अरबां रो आंकड़ो छोड़‘र
किरोड़ां री पंगत में आवां
किरोड़ां स्यूं लाखां में
लाखां स्यूं हजारां में
हजारां स्यूं सैकड़ां में
सैंकड़ा स्यूं पाई में
पाई स्यूं इकाई में
इणी भान्त
इकाई रै सिरे पर खड़या हो‘र
देखण स्यूं
म्हारो थारो/थारो म्हारो
भेद आपै ही बिसरीज जासी।
समै री दूरी तोड़ां
नूंवों इतिहास रचां
भूगोल री सीवां बिसरावां
बिना नांव रा नांव
बिना सींव रा गांव
नैडै चालां
आं नावां रै। आं गांवां रै
जठै सांच रो सिरो होसी।