चौसर खेलता है राजा
दाँव पर लगती है रानी,
तालियाँ बजाते हैं दरबारी
दीवारें देती हैं गवाही ।
आप और मैं ?
न राजा, न रानी
न दीवारें, न दरबारी
हम तो हैं बस कौड़ियाँ
किसी की मुट्ठी में खनकते हैं
ज़मीन पर गिरते हैं
और थरथराते रहते हैं—
बस यही अपनी आवाज़
बस यही अपना काम ।