स्त्री सबके लिए खुद को
समायोजित करती,
अपने योजनों का विलय
और प्रयोजनों से भ्रमित होती
प्रकृति, धैर्य धरित्री,संज्ञाओं से विभूषित
बुद्ध को जन्मती
हरित छाया से आत्मबोध की शीतलता देती
बस एक वट वृक्ष बनकर रह जाती है...
जीवन की सार्थकता का बोध
हृदय पर भूरी धारियों सा सजा कर
मुक्ति मार्ग पर आम्रपाली सी चलती जाती है।