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आयु संवाद / ब्रज श्रीवास्तव

हमने पृथ्वी की आयु से चर्चा की
उसकी आवाज़ की आयु ज्यादा नहीं रही
हमने इतिहास की आयु जानना चाही
वह गणना करता रह गया.
अंतरिक्ष आयुवान इतना कि लगभग दुखी
आकाश तो जानता ही नहीं समय का नाम
कुछ चीज़ें दूरी को ही मानती रहीं अपनी आयु
जैसे समुद्र अपनी काया को संभालते हुए
भूला रहा आयु का हिसाब
कुछ पक्षी सिर्फ उड़ने के सिवा कुछ नहीं जानते थे
घोंसलों को कोई भाषा ही नहीं आती
वायु भी लापरवाह थी अपनी आयु को लेकर
वह आयु जगत की एक ख़ास जात रही
किताबें अपनी आयु खुद नहीं जानतीं
कविताएं खुद कभी नहीं बतातीं आयु
जबकि हम यही जानने में लगे रहे
पूरी आयु भर
अपनी आयु के बराबर कोरा कागज है मेरी टेबिल पर.
मैं बैठा हुआ हूँ इरादों के कुछ विचार लेकर