कितना अच्छा होगा
जब दुनिया में सिर्फ़ रहेंगे
ईश्वर से अनभिज्ञ,
प्राणी-प्राणी प्रेम-प्रतिज्ञ !
फिर
ना मंदिर होंगे, ना मसजिद
ना गुरुद्वारे, ना गिरजाघर !
कितनी होगी हैरत !
मारेगा कौन किसे ?
फिर कौन करेगा नफ़रत ?
सिर्फ़ मुहब्बत होगी,
होगी गै़रत !
सब ‘तनखैया’ होंगे,
भैया-भैया होंगे !