मेल बैठता नहीं सदा दर्शन-जीवन का।
कहते हैं, आलस्य बड़ा भारी दुर्गुण है।
किन्तु, आलसी हुए बिना कब सुख मिलता है?
और मोददायिनीं वस्तुएँ सभी व्यर्थ हैं।
फूल और तारे, इनका उपयोग कौन हैं?
मेल बैठता नहीं सदा दर्शन-जीवन का।
कहते हैं, आलस्य बड़ा भारी दुर्गुण है।
किन्तु, आलसी हुए बिना कब सुख मिलता है?
और मोददायिनीं वस्तुएँ सभी व्यर्थ हैं।
फूल और तारे, इनका उपयोग कौन हैं?