मा, मस्तक नहि रहत अनुन्नत, नहि दुख होएत आब,
सब कटिबद्ध चरण-सेवाहित, बदलल भुवनक भाव,
देब दिव्यवर, हमर जाहिसँ मेटय कुकृत्य कलंक,
पाबि अतीत-सरस-गुण गौरव, हम न कहाबी रंक,
दृढ़ प्रतिज्ञ हम, किन्तु अहँक करतल-गत पूतक लाज
जँ हेरब तँ पड़त शीश पर निश्चय विजयक ताज।