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आसमान अपना / राजेन्द्र वर्मा

सूनी आँखों ने देखा है
एक और सपना,
धरती इनकी-उनकी,
लेकिन आसमान अपना ।

एक हाथ सिरहाने लग
तकिया बन जाता है
और दूसरा सपनों के सँग
हाथ मिलाता है

पौ फटते ही योगक्षेम का
शुरू मंत्र जपना ।

एक दिवस बीते तो लगता,
एक बरस बीता
असमय ही मेरे जीवन का
अमृत-कलश रीता

भरी दुपहरी देख रहा हूँ
सूरज का कँपना ।

जीवन की यह अकथ कहानी
किसे सुनाऊँ मैं
जिसे सुनाने बैठूँ, उसको
सुना न पाऊँ मैं

दुख को यथायोग्य देने को
सीख रहा तपना ।।