इस अरअराती गहराती डराती सांझ से
चुका नहीं हूं मैं
मेरी आस्था के कंगूरों में
आज भी जगमगाते हैं
सूरत, चांद, तारे
मेरी जय-सरिता का उद्भव, बहाव
यहीं से होगा-होगा-होगा...
इस अरअराती गहराती डराती सांझ से
चुका नहीं हूं मैं
मेरी आस्था के कंगूरों में
आज भी जगमगाते हैं
सूरत, चांद, तारे
मेरी जय-सरिता का उद्भव, बहाव
यहीं से होगा-होगा-होगा...