Last modified on 11 अगस्त 2008, at 21:21

आस्था / महेन्द्र भटनागर

सींचो !
कण-कण को सींचो !
हर सूखे बिरवे को पानी दो,
टूटे उखड़े झाड़ों को
अभिनव बल
फिर-फिर बढ़ने की तेज़ रवानी दो
हर सूखे बिरवे को पानी दो !

नंगी-नंगी शाखों को
जल-कण मुक्ता भूषण दो
चिर बाँझ धरा को
जल का आलिंगन दो
शीतल आलिंगन दो !
शायद, गहरी-गहरी परतों के नीचे
जीवन सोया हो,
तम के गलियारों में खोया हो !

सींचो
अन्तस् की निष्ठा से सींचो,
शायद, चट्टानों को फोड़ कहीं,
नव अंकुर डहडहा उठें,
बाँझ धरा का गर्भस्थल
नूतन जीवन से कसमसा उठे !

सींचो
कण-कण को सींचो !
हर मिट्टी में गर्मी है
हर मिट्टी पूत प्रसव-धर्मी है !