न जाने क्यों
इस ओढ़नी और पगड़ी की
गरिमा में ही
मेरी आस्था को
एक दिलासा मिलती है
कि कभी तो समाज को
इसकी जरूरत का
होगा एहसास।
काश मानव
इसकी महत्ता को
अपने व्यक्तित्व का
गहना समझ सकता
समाज का रूप
चांदी सा चमक उठता।
न जाने क्यों
इस ओढ़नी और पगड़ी की
गरिमा में ही
मेरी आस्था को
एक दिलासा मिलती है
कि कभी तो समाज को
इसकी जरूरत का
होगा एहसास।
काश मानव
इसकी महत्ता को
अपने व्यक्तित्व का
गहना समझ सकता
समाज का रूप
चांदी सा चमक उठता।