शब्द स्वयं में
बेजोड़ होते हैं
उन्हें तोड़ने की
कोशिश न करो
वरना समाज
बिखरकर
रह जायेगा।
अगर समाज बिखरा
मानव
अपना चेहरा स्वयं
न पहचान सकेगा
क्योंकि
दर्पण में आई दरार
मनुष्य के
मुख पर ही नहीं
उसके अंतर आत्मा पर भी
एक प्रश्नचिन्ह छोड़ जाएगी।
जैसे प्रश्नचिन्ह
किसी भी प्रश्न का
उत्तर नहीं हो सकता
वैसे ही
टूटे शब्द
किसी भी पाठ के
समुचित
वाक्य नहीं हो सकते।