Last modified on 27 नवम्बर 2022, at 23:07

इंतजार / मनोज भावुक

जेठ के दुपहरिया में
खटत बा।

एह उमेद पर
कि एक दिन सावन आई
त मन के धरती हरियरा जाई।
बाकिर

हाय रे हमार पागल परान
घाम में जर के राख भइल
राह निहारत लाश भइल
आ अब

एह फसल खातिर
का सावन का भादो?