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इंसान / मनोज चौहान

{{KKRachna | रचनाकार=

क्यों टूटते हैं रिश्ते ,
पतझड. के पतों के समान,
क्यों नहीं समझ पाता,
आज इन्सान को इन्सान l

पैदा हुआ है इन्सान,
प्यार बांटने के लिए,
फिर ये नफरत फैलाना,
कहां से सीख,
गया इन्सान l

हर कोई चूर है यहां,
अपने ही अभिमान में,
कोई मुझे बताए आकर,
कहां खो गया है इन्सान l

इन्सान को दिल दिया,
ताकि समझ सके,
वो दर्द दुसरे का,
दिमाग दिया इन्सान को,
ताकि स्वर्ग बना दे,
इसी धरा को l

जो उठे इन्सान,
तो देवता बन जाए,
और गिरे तो दानव को,
भी पीछे छोड. जाए l

भगवान ने रचा,
प्रकृति को,
बनाए चांद तारे,
सुरज और आसमान l


फिर बनाई उसने,
अपनी सर्वोतम रचना,
दी उसने सज्ञां उसको इन्सान,
पछता रहा होगा,
भगवान भी देखकर,
आखिर क्यों पैदा कर दिया,
उसने इन्सान ।