एक बून्द-सा लमहा है
मानो कोई सीप उसे निगल जाती है।
फिर करोड़ों साल बाद
किसी समन्दर के किनारे
अगर हमारी मुलाक़ात हो
और हमें वह सीप मिल जाय
तो क्या उसके पेट में
वह बून्द
तब तक
एक मोती बन चुकी होगी ?
सिर्फ़ इतना-सा है
हमारे इस लमहे का मतलब।
(रवीन्द्रनाथ के एक उपन्यास के संलाप से प्रभावित)