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इच्छा / सुनील गंगोपाध्याय / सुलोचना

काँच की चूड़ी को तोड़ने के समान रह-रहकर इच्छा होती है
कि तोड़ डालूँ दो चार नियम - क़ानून
पाँव के नीचे पटक दूँ सिर पर रखा मुकुट
जिनके पाँव के नीचे हूँ, उनके सर पर चढ़ बैठूँ

काँच की चूड़ी को तोड़ने के समान ही इच्छा होती है अवहेलना करने की
कि धर्मतला में भरी दुपहरी बीच रास्ते पर करूँ सुसु ।
इच्छा होती है दोपहर की धूप में
ब्लैकआउट का हुक्म देने की
इच्छा होती है कि करूँ झाँसा देकर व्याख्या जनसेवा की
इच्छा होती है कि मलूँ कालिख
धोखेबाज नेताओं के चेहरों पर
इच्छा होती है कि दफ़्तर जाने के नाम पर जाऊँ बेलूर मठ
इच्छा होती है कि करूँ नीलाम धर्माधर्म मुर्गीहाटा में
गुब्बारे खरीदूँ गुब्बारे फोडूँ, काँच की चूड़ी दिखते ही तोडूँ

इच्छा होती है कि अब पृथ्वी को तहस - नहस करूँ
स्मारक के पाँव के पास खड़े होकर कहूँ
मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगता है ।

० धर्मतला, मुर्गीहाटा, बेलूर मठ = कोलकाता की विभिन्न जगहों के नाम

मूल बंगाली से अनुवाद : सुलोचना

लीजिए, अब बंगाली भाषा में यही कविता पढ़िए
             সুনীল গঙ্গোপাধ্যায়
                        ইচ্ছে

কাচের চুড়ি ভাঙার মতন মাঝে মাঝেই ইচ্ছে করে
দুটো চারটে নিয়মকানুন ভেঙে ফেলি
পায়ের তলায় আছড়ে ফেলি মাথার মুকুট
যাদের পায়ের তলায় আছি, তাদের মাথায় চড়ে বসি

কাচের চুড়ি ভাঙার মতই ইচ্ছে করে অবহেলায়
ধর্মতলায় দিন দুপুরে পথের মধ্যে হিসি করি।
ইচ্ছে করে দুপুর রোদে ব্ল্যাক আউটের হুকুম দেবার
ইচ্ছে করে বিবৃতি দিই ভাঁওতা মেরে জনসেবার
ইচ্ছে করে ভাঁওতাবাজ নেতার মুখে চুনকালি দিই।
ইচ্ছে করে অফিস যাবার নাম করে যাই বেলুড় মঠে
ইচ্ছে করে ধর্মাধর্ম নিলাম করি মূর্গিহাটায়
বেলুন কিনি বেলুন ফাটাই, কাচের চুড়ি দেখলে ভাঙি

ইচ্ছে করে লন্ডভন্ড করি এবার পৃথিবীটাকে
মনুমেন্টের পায়ের কাছে দাঁড়িয়ে বলি
আমার কিছু ভাল্লাগে না।।