Last modified on 18 सितम्बर 2017, at 17:32

इज़्ज़तपुरम्-73 / डी. एम. मिश्र

प्रेम की हो पराकाष्ठा
वासना की नहीं
सदाचार का हो ओर छोर
व्यभिचार का नहीं

प्यास की हो तृप्ति
तृष्णा की नहीं
यह भेदमंत्र नहीं
सीढ़ी है अर्थ की

कोई कारोबार
इतना न सिद्धहस्त हो
इतना न हंगामेदार
हींग लगे न फिटकरी
रंग हो चोखा

एक छोटी खटिया पर
खड़ी उद्योग-कम्पनी हो

भयमुक्त मौज करेा
विज्ञान बहुत आगे है
पानी घहरा कर बरसें
अँखुआ एक न फूटे