जितना नभ का असीम विस्तार
पिय! तुमसे है कुछ इतना प्यार।
पलकों पर रखे रंग-बिरंगे सपने
न थे, किन्तु, अब दिगन्त प्रसार।
तुमने क्षितिज पर इन्द्रधनु- सा
कर डाला सतरंगी सब संसार।
मैं तो हिय -सी हूँ जड़ काया में
रुधिर तुम पिय! चेतन संचार।
विशाल परिधि को तुम घेरे हो
दिग-दिगन्त तक तुम आकार।
तुम रवि इस हरीतिमा धरा के
सदियों से देते जीवन-आधार।
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