जो जिये वे ध्वजा फहराते घर लौटे
जो मरे वे खेत रहे।
जो झूमते नगर लौटे, डूबे जय-रस में।
(खँडहरों के प्रेत और कौन हैं-
जिन के मुड़े हों पैर पीछे को?)
जो खेत रहे थे, वे अंकुरित हुए
इतिहासों की उर्वर मिट्टी में,
कुसुमित पल्लवित हुए स्वप्न-कल्पी लोक-मानस में।
दिल्ली, 18 मार्च, 1954