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बड़ी देर से मौसम
एक जैसा है
न यह बहार बनता है
न पतझर
काश! यह मौसम मेरे मन के
मौसम के बराबर हो जाए
एक मुद्दत से माहौल में
बड़ा शोर मचा हुआ है
न यह चुप में बदलता है
और न ही संगीत में
काश! यह सरगम बन जाए
सुरताल में बंध जाए
बरसों से यह
पत्थर का बुत बना हुआ है
काश! यह रब्ब बन जाए
ताकि मैं उसे पूज सकूँ
या फिर जीता-जागता
इन्सान
ताकि मैं उससे बातें कर सकूँ।